hindisamay head


अ+ अ-

कविता

विष

संजीव ठाकुर


इस पत्थर के जंगल में
भौंकते हैं लोग
छोड़ देते हैं
कराहने
दिन–रात
अपने ही हाल पर
यह भूल
कि निकला है विष
उनके ही भौंकने से !
 


End Text   End Text    End Text